स्वर: मुन्नी बेग़म
हुआ ज़माना के उसने हमको न भूल कर भी सलाम भेजा
मिज़ाज पूछा न हाल लिखा न ख़त न कोई पयाम भेजा
नहीं है तौबा का ऐतबार अब नहीं है अब दिल पे इख़्तियार अब
बुला रही है हमें बहार अब घटाओं ने भी पयाम भेजा
ये बेबसी कैसी बेबसी है के रह सके वो न ताबा आख़िर
निगाह-ए-ग़म ही ने ताबा आख़िर पयाम-ए-शौक़-ए-तमाम भेजा
बहार-ए-उम्मीद छा रही है बहश्त-ए-दिल लहलहा रही है
ये फूल क्यों उसने ख़त में रखकर हमें बयीं एहतमाम भेजा
बहुत खूब, भाई । बहुत खूब।
आभार इसे पेश करने का!!
बढि़या प्रस्तुति