पिछले सप्ताहांत पर आई आई टी कानपुर के रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग द्वारा आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन केम्फ़ेरेन्स 08 में रोजे ख़ान मंगनियर मंडली द्वारा एक राजस्थानी लोकगीतों का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। मंगनियर स्वयं को राजपूतों का वंशज मानते हैं और थार (जैसलमेर और बाड़मेर) के सर्वोत्तम संगीतकारों मे से हैं। एक और ध्यान देने योग्य पहलू यह है कि हमेशा से ही इनके संरक्षक हिन्दू रहे हैं परन्तु मंगनियर सदैव मुस्लिम होते हैं।
प्रस्तुत है इसी कार्यक्रम के कुछ अंश:
महाराज गजानन आओ रे, म्हारी मंडली में रंग बरसाओ रे
निंबुड़ा निंबुड़ा
दमादम मस्त क़लन्दर
रंगीलो म्हारो
राजस्थानी अलगोजा (दो बाँसुरी)
राजस्थानी बीन
मंगनियारों को रूबरू सुनना एक ऐसा अनुभव है जिसे भुलाना आसान नहीं…संगीत की विधिवत शिक्षा के बिना भी वो जब गाते हैं तो लगता है जैसे माँ सरस्वती उनके कंठ में बिराजमान हैं…छोटे छोटे बच्चे हाथों में खड़ताल बजाते जब नाचते झूमते हैं तो देखते सुनते ही बनता है…एक लुप्त प्राय जाति की संगीत विधा को पूरे विश्व में परिचय करवाने का श्रेय सुश्री तृप्ति पाण्डेय को जाता है.
नीरज