नंदी हिल्स, बंगलुरू

दिसम्बर 30, 2007

बंगलुरू से निकटतम दूरी (५५ कि.मी.) पर स्थित पहाड़ी है नंदी हिल्स| समुद्रतल से लगभग १४५० मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पर्यटन स्थल सप्ताहांत सैर के लिए एकदम उपयुक्त है| बंगलुरू से हैदराबाद राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ७ (NH-7) पर लगभग ४० किलोमीटर चलने के बाद यहाँ के लिए रास्ता अलग होता है| सड़कों की हालत ठीक ही है अतः आराम से ७० -८० कि.मी. प्रति घंटा की गति से वाहन चालन किया जा सकता है| वैसे तो यहाँ जाने के लिए सरकारी बसें भी उपलब्ध हैं परन्तु व्यक्तिगत वाहन से यात्रा का अधिक आनंद उठाया जा सकता है| चार-पाँच लोगों का साथ हो तो सोने पे सुहागा| इस बार बड़े दिन की छुट्टी हमने मित्रों (दीपक, विवेक और मणि) के साथ नंदी हिल्स पर ही व्यतीत की| नंदी हिल्स के बारे में ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यह अपेक्षाकृत कम विकसित पर्यटन स्थल है इसलिए ऊपर खाने पीने के लिए कम विकल्प हैं| कम विकसित होने का फ़ायदा यह है कि अक्सर भीड़ नहीं होती और आप आराम से वादियों का आनंद ले सकते हैं| यह टीपू सुल्तान का ग्रीष्मावकाश निवास स्थल था और इस वजह से आस पास कुछ पुरानी इमारतें तथा वाटिकाएं हैं| इसे मैं बंगलुरू के पास के अवश्य रूप से देखे जाने वाले पर्यटन स्थानों की सूचि में तो नहीं रखूंगा परन्तु मित्रों के साथ एक दिन बिताने के लिए ये बुरा नहीं है|

निम्नांकित लिंक पर जाकर आप नंदी हिल्स का पूर्वदर्शन कर सकते हैं। समयाभाव के कारण अभी तक सभी छायाचित्र अपलोड नहीं किये गये हैं, कृपया कुछ समय पश्चात पुन: देखें ।

सभी पाठकों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

धन्यवाद…

नंदी हिल्स, बंगलूरु

जवाहर लाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केन्द्र, बंगलुरू

दिसम्बर 27, 2007

बंगलुरू स्थित जवाहर लाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केन्द्र, जोकि जे एन सी के नाम से प्रसिद्ध है, देश के अग्रणी वैज्ञानिक अनुसंधान केन्द्रों में गिना जाता है| इसकी स्थापना भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मशती वर्ष अर्थात् १९८९ में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology/DST) के द्वारा की गयी| शुरुआत में इसे भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science/IISc) परिसर में ही प्रारंम्भ किया गया और फिर बाद में इसके विस्तृत परिसर का निर्माण यहाँ से लगभग १२ किमी दूर बंगलुरू-हैदराबाद राष्ट्रीय राज मार्ग संख्या ७ के निकट जक्कूर नामक स्थान पर किया गया| जक्कूर स्थित जे एन सी परिसर काफ़ी शांत, मनोरम तथा अनुसंधान के लिए एकदम उपयुक्त वातावरण देता है| आई आई एस सी परिसर से जे एन सी परिसर के बीच समय समय पर संस्थान की बस सुविधा है| अभी भी आई आई एस सी परिसर में जे एन सी कार्यालय तथा जे एन सी अतिथि गृह (जवाहर विजिटर्स हाउस / जे वी एच) स्थित हैं| जे एन सी में स्थित ७ विभागों में, जिन्हें यहाँ इकाई कहते हैं, लगभग ४० प्राध्यापक तथा २०० शोधार्थी हैं| यहाँ पर शोध कार्य भौतिकी, रसायन, पदार्थ विज्ञान व जीवविज्ञान के अतिरिक्त बहुविषयक अनुसंधान पर केंद्रित है| आधारभूत सुविधाओं की दृष्टि से यह केन्द्र काफ़ी धनी है तथा अनुसंधान के लिए आवश्यक लगभग सभी मुख्य उपकरण यहाँ उपलब्ध हैं| सुप्रसिद्ध रसायन शास्त्री प्रो. सी एन आर राव के नेतृत्व में इस संस्थान ने पिछले एक दशक में काफ़ी उन्नति की है|

जे एन सी की आधिकारिक वेब साइट (हिन्दी में): http://www.jncasr.ac.in/hindi

परिसर के कुछ छाया चित्र निम्नांकित लिंक पर उपलब्ध हैं

जे एन सी

कर्नाटक में देशाटन के सूचना स्रोत

दिसम्बर 12, 2007

बंगलुरू आने के बाद से यहाँ की काफ़ी कम चीजें ही मुझे प्रभावित कर पायी हैं उनमें से एक है यहाँ की सरकारी सड़क परिवहन सेवा| यदि आप बंगलुरू के आस पास कहीं भी घूमने जाना चाहते हैं तो कर्नाटक राज्य पर्यटन विकास निगम की वेबसाइट से इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और उसके द्वारा संचालित पैकेज यात्रा का भी लाभ उठा सकते हैं| आसपास के लगभग सभी रमणीय स्थानों के लिए यहाँ से पैकेज यात्राएं उपलब्ध हैं| साथ ही यदि आप किसी निकटवर्ती स्थान (तीन-चार सौ किलोमीटर तक) पर जाने के लिए राज्य सड़क परिवहन सेवा का लाभ उठाना चाहते हों तो भारतीय रेलवे की भाँति ही इसका भी टिकट ऑनलाइन बुक कर सकते हैं| परन्तु ऑटो रिक्शा से मेरे कई कटु अनुभव रहें हैं इसलिए मैं इसके प्रति सभी को सचेत करना अपना कर्तव्य समझता हूँ| अधिकतर ऑटो रिक्शा चालक आपसे बोलेंगे कि मीटर काम नहीं कर रहा है| अब कल ही की बात ले लीजिये पहले तो आई. आई. एस सी. से मल्लेश्वरम जाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ फ़िर जब तैयार हुआ तो २.५ किलोमीटर के ३० रुपये मांगे (नियमानुसार १५ रुपये बनते हैं) और जब हमलोग तैयार भी हो गए ३० रुपये देने को तो गंतव्य स्थान पर पहुँच कर वह ४० रुपये की माँग करने लगा| यहाँ पर गौर करने वाली बात यह थी कि यात्रा से पहले व यात्रा के दौरान उसे हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान नहीं था परन्तु पैसे मांगने के लिए उसे पता नहीं कैसे हिन्दी आ गयी| मैं जानता हूँ कि इस घटना का सामान्यीकरण करना उचित नहीं है परन्तु यदि आपके अधिकतर अनुभव ऐसे ही हों तब और किया भी क्या जा सकता है? वैसे सुना है कि यदि आपको स्थानीय भाषा का ज्ञान है तो उनका व्यवहार एकदम विपरीत होता है| सही है एक और रेसियल डिस्क्रिमिनेशन देखने को मिला|


लालबाग वानस्पतिक उद्यान, बंगलुरू

दिसम्बर 7, 2007

बंगलुरू में अपने दूसरे सप्ताहांत पर अपने मित्र चन्द्रशेखर (जिसे मैं चंदू और ऑफिस वाले चन्द्रा जी बुलाते हैं) के साथ लालबाग वानस्पतिक उद्यान (botanical garden) घूमने का अवसर प्राप्त हुआ| बंगलुरू में यह देखा जाय तो यह हमारा प्रथम पर्यटक स्थान भ्रमण था, वैसे पिछले सप्ताह हम आई. आई. एस सी. के पास ही यशवंतपुर स्थित इस्कॉन मन्दिर भी गए थे| इस उद्यान की स्थापना मैसूर के सुल्तान हैदर अली ने १७४० से १७६० के बीच की थी, बाद में अंग्रेजों तथा आज़ादी के बाद सरकार ने इसका विस्तार तथा देखभाल की| यह एक शाम बिताने के लिए अच्छा स्थल है और प्रेमी युगल तो अपनी कई शामें यहीं बिताते हैं| यह लगभग बंगलुरू के केन्द्र में है और यातायात की कोई असुविधा नहीं है| यहाँ पर देखने के लिए अनेक दुर्लभ प्रजाति के पेड़-पौधे और पक्षी, एक शीश महल, लालबाग झील इत्यादी स्थान हैं| पूरा घूमने के लिए कम से कम २ घंटे का समय चाहिए, वैसे विद्युत चालित वैन भी चलती है जिससे इसे कम समय में भी निपटाया जा सकता है| इस जगह का मूल्यांकन आप निम्नांकित लिंक पर उपस्थित मेरी चित्रावली से भी कर सकते हैं|

लालबाग, बंगलुरू

कुछ सफ़ल हिन्दी फिल्में और उनकी प्रेरणास्रोत

दिसम्बर 6, 2007

हिन्दी सिनेमा की निंदा का सिलसिला आगे बढ़ते हुए लीजिये प्रस्तुत है कुछ सफ़ल हिन्दी फिल्मों तथा उनकी प्रेरणास्रोत (दरअसल नक़ल स्रोत) विदेशी फिल्मों का कच्चा चिट्ठा| यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये सभी फिल्में अपने दौर की श्रेष्ठ हिन्दी फिल्मों में गिनी जाती हैं और सामान्यतया हिन्दी फिल्मों के आलोचक भी इन्हें इस नक़ल के आरोप से बारी कर देते हैं| साथ में थोड़ा कहानी का तुलनात्मक विश्लेषण भी दिया गया है|

शोले (१९७५): सेवेन समूराई (१९५४) > मेग्निफिसेंट सेवेन (१९६०)

शुरू करते हैं हिन्दी फ़िल्म जगत की सफलतम फिल्मों में से एक शोले से| एक गाँव के लोगों द्वारा डाकुओं से अपनी रक्षा के लिए कुछ शहर के तथाकथित बदनाम और नाकारा लोगों को किराये पर बुलाना| यह कहानी मूलतया सुप्रसिद्ध जापानी फ़िल्मकार अकीरा कुरोसावा के दिमाग की उपज थी जिन्होंने १९५४ में सेवेन समुराई (जापानी में इसका नाम था “सिचिनिन नो समुराई”) नामक फ़िल्म बनायी| १९६० में इसी फ़िल्म का हालीवुड रीमेक मेग्निफिसेंट सेवेन आयी जिसमें बस जापानी गाँव के स्थान पर एक अमरीकी गाँव कुछ प्रसंगोचित फेरबदल के साथ दिखाया गया| इस फ़िल्म में एक जापानी गाँव पे डकैतों का प्रकोप दिखाया गया है, लगभग गब्बर सिंह जैसा| गाँव का मुखिया शहर जाकर सात लोगों को भर पेट खाने और धनालाभ का प्रस्ताव देकर गाँव बुला कर लाता है| वैसे इसमें न तो ठाकुर जैसे किसी किरदार को ज्यादा प्राथमिकता दी थी और न ही वीरू और जय जैसे किसी योद्धा को| बसन्ती जैसा भी कोई किरदार नहीं है और गानों का तो सवाल ही नहीं उठता| अब तक शायद आपके दिमाग़ में शोले की सभी मौलिकताएं साफ़ हो गयी होंगी|

सत्ते पे सत्ता (१९८२): सेवेन ब्राइड्स फॉर सेवेन ब्रदर्स (१९५४)

घर से दूर फार्म हाउस में सात असभ्य भाई रहते हैं| सबसे पहले बड़ा भाई शादी करता है; भाभी आकर बाकियों को इंसान बनाती है| सभी फ़िर जाकर अपनी अपनी महबूबाओं को उनके घर से उठा कर ले आते हैं| यहाँ तक कहानी लगभग एक जैसी और हाँ क्योंकि सेवेन ब्राइड्स फॉर सेवेन ब्रदर्स एक म्यूजिकल फ़िल्म थी इसलिए गाने भी लगभग एक ही तर्ज पर हैं| सत्ते पे सत्ता की मौलिकता आती है जब रवि आनंद (अमिताभ बच्चन) का हमशक्ल बाबू आता है|

संघर्ष (१९९९): द साइलेंस ऑफ़ द लैम्ब्स (१९९१)

एक क्रमवार खून करने वाला अज्ञात हत्यारा… उसका पीछा कर रही एक महिला पुलिस… जेल में बंद एक कुशाग्र बुद्धि वाला व्यक्ति जोकि हत्यारे के दिमाग को पढ़के उसका अगला षडयंत्र बता सकता है… लगभग एक जैसा ही घटनाक्रम दोनों फिल्मों में देखने को मिलता है| बस जोडी फोस्टर ने प्रीती जिंटा से कहीं अधिक निडर और साहसी किरदार निभाया है और संघर्ष में आशुतोष राणा ने एक पारलैंगिक (transsexual) की भूमिका नहीं निभाई है|

मुन्नाभाई एम. बी. बी. एस. (२००३): पैच एडम्स (१९९८)

कहानी का सार यदि छोड़ दें तो निर्देशक ने पूरी कोशिश की है की एक नयी कहानी पेश की जाय| पैच एडम्स के साथ कोई सर्किट जैसा पुछल्ला नहीं था और पैच एडम्स वाकई में एक चिकित्सक बनना चाहता था और अंत में बना भी| पैच एडम्स में जहाँ फ़िल्म के संदेश पर ही ध्यान केंद्रित किया गया था जिसकी वजह से फ़िल्म ज्यादा संगीन है जबकि मुन्नाभाई एम. बी. बी. एस. को एक सफल व्यावसायिक फ़िल्म बनाने के उद्देश्य से मनोरंजन की दृष्टि से सारा मसाला डाला गया है|

सरकार (२००५) : गॉडफादर (१९७२)

सरकार वो ऐसी पहली फ़िल्म है जिसमें फ़िल्म निर्माता द्वारा फ़िल्म के प्रारंभ में ही स्वीकार किया गया है कि यह फ़िल्म गॉडफादर से प्रेरित है| चाहे यह राम गोपाल वर्मा ने मजबूरी में ही किया हो पर इस कदम के लिए मैं उनकी दाद देता हूँ| इस फ़िल्म में भी मौलिकता के नाम पर कुछ ख़ास नज़र नहीं आता| सुनने में आया था कि सरकार की सफलता के बाद रामू गॉडफादर-२ की तरह ही सरकार-२ भी बनाना चाहते थे| पता नहीं चाहत को क्या हुआ?

वैसे तो हिन्दी फ़िल्म जगत में नकलची फिल्मों की भरमार है पर इन हिन्दी फिल्मों को देखकर मैं काफ़ी प्रभावित हुआ था या फ़िर यूँ कहा जाय कि ये सभी फिल्में बड़ी ही खूबसूरती से टोपी गयीं हैं| …वैसे यह भी तो एक कला ही है|