हाल में ही प्रदर्शित हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म गुलाल का संगीत काफ़ी प्रभावशाली है। आज के दौर पर कटाक्ष ये छोटा सा छन्द जोकि बिस्मिल के “सरफ़रोशी की तमन्ना” का एक्स्टेंशन है, मुझे बहुत अच्छा लगा। आप भी सुनिये –
ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दोस्ताँ
देखते कि मुल्क़ सारा ये टशन में थ्रिल में है
आज का लौंडा ये कहता हम तो बिस्मिल थक गये
अपनी आज़ादी तो भइया लौंडिया के तिल में है
आज के जलसों में बिस्मिल एक गूँगा गा रहा
और बहरों का वो रेला नाचता महफ़िल में है
हाथ की खादी बनाने का ज़माना लद गया
आज तो चड्ढी भी सिलती इंगलिसों की मिल में है