ख़ुमार बाराबंकवी की कुछ ग़ज़लें…

अगस्त 11, 2009

ख़ुमार बाराबंकवी

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे…

ऐसा नहीं के उनसे मुहब्बत नहीं रही…

एक पल में एक सदी का मज़ा हम से पूछिये…

वो हमें जिस कदर आजमाते रहे…


बात करनी मुझे मुशकिल कभी ऐसी तो न थी…

जून 18, 2009

स्वर:मेंहदी हसन
रचना: बहादुर शाह ज़फ़र


बस कर जी

अक्टूबर 24, 2008

रचना: बाबा बुल्ले शाह
स्वर: पूरण चन्द्र वडाली और प्यारेलाल वडाली (वडाली बन्धु)

बस कर जी हुण बस कर जी, इक बात असाँ नाल हँस कर जी

तुसीं दिल मेरे विच वसदे हो, एवें साथों दूर क्यों नसदे हो
नाले घत जादू दिल खसदे हो, हुण कित वल जासो नस कर जी
बस कर जी हुण बस कर जी

तुसीं मोयाँ नु मार ना मुकदे सी, खिदो वांग खूंडी नित कुटदे सी
गल्ल करदेयाँ दा गल घुटदे सी, हुण तीर लगाया कस कर जी,
बस कर जी हुण बस कर जी

बुल्ला शाह मैं तेरी बरदी हाँ, तेरा मुख वेखण नूँ मरदी हाँ
नित सौ सौ मिन्नताँ करदी हाँ, हुण बैठ पिंजर विच ठँस कर जी
बस कर जी हुण बस कर जी

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दो और :: लपक झपक और आ मिल यार

अगस्त 18, 2008

लपक झपक :: मन्ना डे :: बूट पॉलिश

आ मिल यार :: वडाली बन्धु :: बुल्ले शाह


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बाबा बुल्ले शाह

जुलाई 17, 2008

बुल्ला की जाणा मैं कौन (वडाली बन्धु)

घूँघट चक लै सजना (नुसरत फ़तेह अली ख़ान)

घूँघट चक लै सजना (वडाली बन्धु)

तेरे इश्क़ नचाया (आबिदा परवीन)