आ पिया इन नैनन में जो पलक ढाँक तोहे लूँ, न मैं देखूँ गैर को न तोहे देखन दूँ
हाथ छुड़ावत जात हो जो निर्मिन जान के मोहे, हिरदय मे से जाओ तो तब मैं जानू तोहे
नील गगन से भी परे सैंया जी का गाँव, दर्शन जल की कामना पत रखियो हे राम
ना जाने किस भेस में साँवरिया मिल जाय, झुक झुक कर संसार में सबको सलाम
अब किस्मत के हाथ है इस बन्धन की लाज, मैने तो मन लिख दिया साँवरिया के नाम
वो चातर है कामनी वो है सुन्दर नार, जिस पगली ने कर लिया साजन का मन राम
जब से राधा श्याम के नैन हुये हैं चार, श्याम बने हैं राधिका राधा बन गयी श्याम
साँसों की माला पे… सिमरूँ मैं पी का नाम
अपने मन की न जानूँ और पी के मन की राम
यही मेरी बंदगी है यही मेरी पूजा, साँसों की माला पे…
इक का साजन मन्दिर में, इक का प्रीतम मस्जिद में, पर मैं साँसों की माला पे…
हम और नहीं कछु काम के मतवारे पी के नाम के, साँसों की माला पे…
प्रेम के रंग में ऐसी डूबी बन गया एक ही रूप,
प्रेम की माला जपते जपते आप बनी मैं श्याम, साँसों की माला पे…
प्रीतम का कुछ दोष नहीं है वो तो है निर्दोष
अपने आप से बातें करके हो गयी मैं बदनाम, साँसों की माला पे…
जीवन का सिंगार है प्रीतम माँग का है सिंदूर
प्रीतम की नजरों से गिरकर जीना है किस काम, साँसों की माला पे…
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