साँसों की माला पे सिमरूँ मैं पी का नाम

मई 22, 2008
स्वर: नुसरत फ़तेह अली ख़ान

आ पिया इन नैनन में जो पलक ढाँक तोहे लूँ, न मैं देखूँ गैर को न तोहे देखन दूँ

हाथ छुड़ावत जात हो जो निर्मिन जान के मोहे, हिरदय मे से जाओ तो तब मैं जानू तोहे

नील गगन से भी परे सैंया जी का गाँव, दर्शन जल की कामना पत रखियो हे राम

ना जाने किस भेस में साँवरिया मिल जाय, झुक झुक कर संसार में सबको सलाम

अब किस्मत के हाथ है इस बन्धन की लाज, मैने तो मन लिख दिया साँवरिया के नाम

वो चातर है कामनी वो है सुन्दर नार, जिस पगली ने कर लिया साजन का मन राम

जब से राधा श्याम के नैन हुये हैं चार, श्याम बने हैं राधिका राधा बन गयी श्याम

साँसों की माला पे… सिमरूँ मैं पी का नाम

अपने मन की न जानूँ और पी के मन की राम

यही मेरी बंदगी है यही मेरी पूजा, साँसों की माला पे…

इक का साजन मन्दिर में, इक का प्रीतम मस्जिद में, पर मैं साँसों की माला पे…

हम और नहीं कछु काम के मतवारे पी के नाम के, साँसों की माला पे…

प्रेम के रंग में ऐसी डूबी बन गया एक ही रूप,
प्रेम की माला जपते जपते आप बनी मैं श्याम, साँसों की माला पे…

प्रीतम का कुछ दोष नहीं है वो तो है निर्दोष
अपने आप से बातें करके हो गयी मैं बदनाम, साँसों की माला पे…

जीवन का सिंगार है प्रीतम माँग का है सिंदूर
प्रीतम की नजरों से गिरकर जीना है किस काम, साँसों की माला पे…

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दूसरा भाग


मस्त नज़रों से अल्लाह बचाये

मई 19, 2008
स्वर: नुसरत फ़तेह अली ख़ान

उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं, हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है, उनकी आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं
आग को खेल पतंगों ने समझ रखा है, सब को अंजाम का डर हो ये ज़रूरी तो नहीं
शेख़ करता है जो मस्जिद में ख़ुदा को सजदे, उसके सजदों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं
सबकी साक़ी पे नज़र हो ये ज़रूरी है मगर, सब पे साक़ी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं

कोई दिल में लिये अरमान चला जाता है, कोई खोये हुये औसान चला जाता है
हुस्न वालों से ये कह दो के न निकलें बाहर, देखने वालों का ईमान चला जाता है

मस्त नज़रों से अल्लाह बचाये, माहजमालों से अल्लाह बचाये
हर बला सिर पे आ जाये लेकिन, हुस्न वालों से अल्लाह बचाये

इनकी मासूमियत पर न जाना, इनके धोके में हरगिज़ न आना
लूट लेते हैं ये मुस्कुराकर इनकी चालों से अल्लाह बचाये

भोली सूरत है बातें है भोली, मुँह में कुछ है मगर दिल में कुछ है
लाख चेहरा सही चाँद जैसा, दिल के तालों से अल्लाह बचाये

दिल में है ख़्वाहिश-ए-हूर-ओ-जन्नत, और ज़ाहिर में शौक-ए-इबादत
बस हमें शेख जी आप जैसे, अल्लाह वालों से अल्लाह बचाये


पसीने पसीने हुये जा रहे हो

मई 18, 2008

रचना: सईद राही
स्वर: मुन्नी बेग़म

पसीने पसीने हुये जा रहे हो
ये बोलो कहाँ से चले आ रहे हो

हमें सब्र करने को कह तो रहे हो
मगर देख लो ख़ुद ही घबरा रहे हो

ये किसकी बुरी तुमको नज़र लग गयी है
बहारों के मौसम में मुरझा रहे हो

ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यों अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो


हुआ ज़माना के उसने हमको

मई 17, 2008

स्वर: मुन्नी बेग़म

हुआ ज़माना के उसने हमको न भूल कर भी सलाम भेजा
मिज़ाज पूछा न हाल लिखा न ख़त न कोई पयाम भेजा

नहीं है तौबा का ऐतबार अब नहीं है अब दिल पे इख़्तियार अब
बुला रही है हमें बहार अब घटाओं ने भी पयाम भेजा

ये बेबसी कैसी बेबसी है के रह सके वो न ताबा आख़िर
निगाह-ए-ग़म ही ने ताबा आख़िर पयाम-ए-शौक़-ए-तमाम भेजा

बहार-ए-उम्मीद छा रही है बहश्त-ए-दिल लहलहा रही है
ये फूल क्यों उसने ख़त में रखकर हमें बयीं एहतमाम भेजा


नीयत-ए-शौक़ भर न जाय कहीं

मई 16, 2008

रचना: नासिर काज़मी
स्वर: मुन्नी बेग़म / ग़ुलाम अली

नीयत-ए-शौक़ भर न जाय कहीं
तू भी दिल से उतर न जाय कहीं

आज देखा है तुझको देर के बाद
आज का दिन गुज़र न जाय कहीं

आरज़ू है कि तू यहाँ आये
और फ़िर उम्र भर न जाय कहीं

दिल जलाता हूँ और सोचता हूँ
रायेगाँ ये हुनर न जाय कहीं

न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाय कहीं

आओ कुछ देर रो ही लें ‘नासिर’
फिर ये दरिया उतर न जाय कहीं

मुन्नी बेग़म

ग़ुलाम अली