बस कर जी

अक्टूबर 24, 2008

रचना: बाबा बुल्ले शाह
स्वर: पूरण चन्द्र वडाली और प्यारेलाल वडाली (वडाली बन्धु)

बस कर जी हुण बस कर जी, इक बात असाँ नाल हँस कर जी

तुसीं दिल मेरे विच वसदे हो, एवें साथों दूर क्यों नसदे हो
नाले घत जादू दिल खसदे हो, हुण कित वल जासो नस कर जी
बस कर जी हुण बस कर जी

तुसीं मोयाँ नु मार ना मुकदे सी, खिदो वांग खूंडी नित कुटदे सी
गल्ल करदेयाँ दा गल घुटदे सी, हुण तीर लगाया कस कर जी,
बस कर जी हुण बस कर जी

बुल्ला शाह मैं तेरी बरदी हाँ, तेरा मुख वेखण नूँ मरदी हाँ
नित सौ सौ मिन्नताँ करदी हाँ, हुण बैठ पिंजर विच ठँस कर जी
बस कर जी हुण बस कर जी

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