शायर: मसरूर अनवर
स्वर: ग़ुलाम अली
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया;
जब चली सर्द हवा मैनें तुझे याद किया;
इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद;
इसका गम है कि बहुत देर में बरबाद किया।
हमको किस के ग़म ने मारा, ये कहानी फ़िर सही।
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फ़िर सही।
उधर जुल्फ़ों में कंघी हो रही है ख़म निकलता है;
इधर रुकरुक के खिंचखिंच के हमारा दम निकलता है;
इलाही ख़ैर हो उलझन पे उलझन पड़ती जाती है;
न उनका ख़म निकलता है न हमारा दम निकलता है।
हमको किस के ग़म ने मारा, ये कहानी फ़िर सही।
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फ़िर सही।
दिल के लुटने का सबब, पूछो न सबके सामने;
नाम आयेगा तुम्हारा, ये कहानी फ़िर सही।
हमको किस के ग़म ने मारा, ये कहानी फ़िर सही।
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फ़िर सही।
दिलवालों क्या देख रहे हो इन राहों में;
अद्दे नज़र तक ये वीरानी साथ चलेगी;
रज्जे मियाँ तुम शाम से कैसे चुप बैठे हो;
कुछ तो बोलो ऐसी चुप से बात बढ़ेगी।
हमको किस के ग़म ने मारा, ये कहानी फ़िर सही।
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फ़िर सही।
नफ़रतों के तीर खाकर दोस्तों के शहर में;
हमने किस किस को पुकारा, ये कहानी फ़िर सही।
हमको किस के ग़म ने मारा, ये कहानी फ़िर सही।
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फ़िर सही।
क्या बताएं प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में;
कौन जीता कौन हारा, ये कहानी फ़िर सही।
हमको किस के ग़म ने मारा, ये कहानी फ़िर सही।
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फ़िर सही।
एक महफ़िल की रिकार्डिंग जिसमें ग़ुलाम अली साहब ने ये ग़ज़ल गायी थी…