रचना: क़तील शिफ़ाई
स्वर: उस्ताद अमानत अली ख़ान
आ मेरे प्यार की ख़ुशबू
मंजिल पे तुझे पहुँचायें
चलता चल हमराही
मेरी ज़ुल्फ़ के साये साये
आ मेरे प्यार की ख़ुशबू
सूरज की तरह मैं
पर मुझमें धूप नहीं है
जो शोला बनकर
मेरा ऐसा रूप नहीं है
जो नज़रों को झुलसाये
आ मेरे प्यार की ख़ुशबू
मैं रात की आँख का तारा
मैं नूर का रोशन ठारा
मैं जागूँ रात के दिल में
जब सो जाये जग सारा
तब तेरी याद आ जाय
आ मेरे प्यार की ख़ुशबू
तू चुनता सिर्फ़ मुझी को
पहचान तुझे गर होती
इंसाफ़ से तू ख़ुद कहता
ये कंकर है ये मोती
मेरा प्यार तुझे समझाये
आ मेरे प्यार की ख़ुशबू
बढिया रचना प्रेषित की है।आभार।